Monday 5 October 2015

तेरे शहर के कारीगर बङे अजीब हैँ ऐ दिल
काँच कि मरम्मत करते हैँ पत्थर के औजारो से

उनके हाथों में मेहँदी लगाने का फायदा ये हुआ..
कि.. रातभर उनके चेहरे से जुल्फे हम हटाते रहे ...

तू’ डालता जा दोस्त शराब मेरे प्यालो में…
जब तक ‘वो’ न निकले मेरे ख्यालों से ।।।

ना जाने किस मिट्टी को मेरे वजूद कि ख्वाहिश थी
मैँ इतना तो बना भी न था जितना मिटा दिया गया हूँ

‪#‎छुपा‬ के मुँह अब क्युँ ‪#‎रोता‬ है
मेरे सीने मे....
"ऐ ‪#‎दिल‬"..
तू मेरी ‪#‎मानता‬ हीं कब था....??

इश्क के चर्चे भले ही सारी दूनियाँ मेँ होते होँगे
पर दिल तो अक्सर खामोशी से ही टूटते हैँ

आदतें बुरी नहीं शौक ऊँचे हैं ,वरना किसी ख्वाब की इतनी औकात नही कि हम देखें और पुरा ना हो.